Human Eye(मानव नेत्र) द्वारा मनुष्य वस्तुओं को देखने का कार्य करता है, नेत्र द्वारा ही वस्तुओं को देख पाना रास्ते पर सीधे चलना आदि कार्य करना संभव हो पाता है। Human Eye (संस्कृत: अक्षि , नयनम् ) (अंग्रेज़ी: Eye) जीवधारियों का वह अंग है जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील है।
रासायनिक अभिक्रिया एवं उनके प्रकार(Chemical reaction and its type)-CliCk Here
- structure of human eye-Human Eye का गोला बाहर से एक दृढ व अपारदर्शी श्वेत परत से ढका रहता है जिसे’ दृढ पटल’ कहते हैं गोले का सामने का भाग पारदर्शी तथा उभरा हुआ होता है। इसे’ कोर्निया’ (cornea)कहते हैं ।नेत्र में प्रकाश इसी से होकर प्रवेश करता है। कोर्निया के पीछे एक रंगीन अपारदर्शी झिल्ली का पर्दा होता है जिसे आईरिस (iris)कहते हैं।
- इस पर्दे के बीच में एक छोटा सा छिद्र होता है जिसे ‘पुतली’ अथवा ‘नेत्र तारा ‘(pupil)कहा जाता है।पुतली की एक विशेषता यह होती है कि यह अधिक प्रकाश में अपने आप छोटी हो जाती है तथा अंधकार आने पर अपने आप बड़ी हो जाती है ।अतः प्रकाश नेत्र के अंदर सीमित मात्रा में ही प्रवेश कर पाती है।
आईरिस (iris) के ठीक पीछे Human Eye लेंस लगा होता है।इस लेंस के पीछे भाग की वक्रता त्रिज्या छोटी तथा अगले भाग की बड़ी होती है। यह कई परतों से मिलकर बनी होती है जिनके अपवर्तनांक बाहर से भीतर की ओर बढ़ते जाते हैं तथा मध्य अपवर्तनांक लगभग 1.44 होता है।लेंस अपने स्थान पर मांस पेशियों के बीच में टिका रहता है तथा इसमें अपनी फोकस दूरी को बदलने की क्षमता होती है। कॉर्निया और नेत्र लेंस की बीच में एक नमकीन पारदर्शी द्रव भरा रहता है जिसे जलीय द्रव्य (aqueous homour) कहते हैं।
इसका अपवर्तनांक 1.336 होता है। नेत्र लेंस के पीछे एक अन्य भी पारदर्शी द्रव होता है जिसे कांच द्रव्य(vitreous humour) कहते हैं इसका अपवर्तनांक भी 1.336 होता है।दृढ़ पटेल के नीचे काले रंग की एक जल्दी होती है जिसे ‘कोरोइड’ (choroid)कहते हैं ।यह प्रकाश को शोषित कर के प्रकाश के आंतरिक परावर्तन को रोकती है।
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इस झिल्ली के नीचे Human Eye के सबसे भीतर एक पारदर्शी झिल्ली होता है। जिसे रेटिना या दृष्टि पटल कहते हैं।यह प्रकाश शिराओं की एक फिल्म होती है। ये शिरॉए वस्तुओं के प्रतिबिंब के रूप रंग और आकार का ज्ञान मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं। जिस स्थान पर प्रकाश रेटीना को छेद कर मस्तिष्क में जाती है, उस स्थान पर प्रकाश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस स्थान को’ अंध बिन्दु’ (blind spot) कहते हैं। रेटिना के बीचो बीच एक पीला भाग होता है, जहां पर बना हुआ प्रतिबिंब सबसे स्पष्ट दिखाई देता है, ‘पीत बिंदु'(yellow spot) कहते हैं।रेटिना पर वस्तु का प्रतिबिंब सदैव उल्टा बनता है।
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मानव नेत्र द्वारा किसी वस्तु को देखना
जब किसी वस्तु से चली हुई प्रकाश की किरणें कार्निया पर गिरती हैं तथा अपवर्तन होकर नेत्र लेंस में प्रवेश करती हैं फिर यह कर्मचारी द्रव लिवर का चित्र में से होती हुई रेटिना पर पहुंचती है जहां वस्तु का उल्टा प्रतिबिंब बनता है प्रतिबिंब बनने का संदेश प्रकाश श्री राम के द्वारा मस्तिष्क तक पहुंचाया जाता है,मस्तिष्क द्वारा यह प्रतिबिंब अनुभव के आधार पर सीधा समझ लिया जाता है।
नेत्र लेंस की फोकस दूरी तथा इस की समंजन क्षमता
जब मानव नेत्र द्वारा बहुत दूर स्थित अनंत पर किसी वस्तु को देखा जाता है तो नेत्र पर आने वाली समांतर किरणें लेंस द्वारा रेटिना पर फोकस हो जाती हैं तथा नेत्र को वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है। नेत्र लेंस से रेटीना तक की दूरी नेत्र लेंस की फोकस दूरी कहलाती है।उस समय मांसपेशियां ढीली पड़ी रहती हैं तथा नेत्र लेंस की फोकस दूरी सबसे अधिक होती है। जब नेत्र किसी समिति वस्तु को देखता है तो मांसपेशियां क्षमा भी पेशियां सिकुड़ कर लेना के तलवों की वक्रता त्रिज्या को छोटी कर देती हैं। नेत्री कि इस प्रकार फोकस दूरी को कम करने की क्षमता को समंजन छमता कहते हैं।
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